मैं रोज़ मिलता था उससे हँसते हुए,
आरजुओं को उससे से छिपाकर,
बरसो से बुनता था पलकों पर सपने उसके,
पर ख्यालों में खो जाती थी हमसे,
दिल-ऐ-नश्तर सी चुभती थी उसकी नज़रे,
रहा नहीं गया मुझसे कुछ बोले बगैर,
मुस्कुरा कर नज़रे झुका लिया था उसने,
और फिर सारी कायनात चेहरे पे समेत कर बोली,
था मुझे भी इंतजार इन्ही लम्हों का......