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Monday, September 3, 2012

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"मेरी उनींदी आँखों से,
एक ख्वाब बनकर गुजर गयी,
"तुम"
  न जाने क्यूँ अब,
हर वक़्त ख्वाब देखने का ,
जी करता हैं,
"मेरा "  

Monday, February 13, 2012

ना जाने  क्यूँ,
कह ना सका,
अपने सतरंगी सपने,
सजा ना सका,
और बसंत आने से ही पहले, 
हार चुका था ,
मैं लफ्जों के खेल में,
यही थी मेरी पहली, आखिरी ,
हार !