परतंत्रता कैसी भी हो वह सदैव घातक होती है. फिर जब सवाल राष्ट्र की आज़ादी का है तो जीवन में उसके संघर्ष करने से कोई बड़ा काम नहीं होता . राष्ट्रदेव भव का पूजन -आराधना सभी देवो से प्रथम है. और उसे आज़ाद कराने के लिए हर स्तर पर स्वीकार करना होगा इसे ही अपने जीवन में सिद्ध कर दिखाया था स्वंत्रता संग्राम सेनानी श्री द्वारिका प्रसाद मौर्य ने.
.. लखीमपुर की धरती के लिए श्री द्वारिका प्रसाद का नाम अनजाना नहीं है, धुन के पक्के और दृढ निश्चय वाले श्री द्वारिका प्रसाद टूट तो सकते थे. लेकिन झुक नहीं सकते. शायद यही कुछ बातें थी जिन्होंने उन्हें अँगेरेजी हुकूमत से दो दो हाथ करने को मजबूर किया , एक साधारण किसान परिवार में जन्मे श्री द्वारिका प्रसाद में बचपन से ही कूट कूट कर राष्ट्रप्रेम व स्वाभिमान भरा था
विकाश खंड बेहजम के गाँव भूलनपुर में साधारण किसान श्यामलाल के घर जन्मे श्री द्वारिका प्रसाद मौर्य बचपन से ही दृढ संकल्पी थे . प्रथिमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद वे लखीमपुर में उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे थे क़ि गाँधी जी ने १९२१ में असहयोग आन्दोलन शुरू कर दिया . लखीमपुर से पंडित बंशीधर मिश्र व् ठाकुर करन सिंह के संपर्क में आये श्री द्वारिका प्रसाद मौर्य से ब्रिटिश हुकूमत के जुल्म बर्दास्त नहीं हुए.
विधार्थी जीवन से स्वंतंत्रता संग्राम में योगदान देने वाले श्री द्वारिका प्रसाद मौर्य को कांग्रेस के उच्चस्थ नेताओ से प्रेरणा मिलती रही महात्मा गाँधी, जवाहर लाल नेहरु जैसे उनके आदर्श बन चुके थे जिसमे आज़ादी क़ी लड़ाई तेज करने वाले श्री द्वारिका प्रसाद मौर्य को १२ साल क़ी कैद व् २५ रुपये जुरमाना हुआ. लेकिन ४ साल बाद देश आज़ाद होने के कारण रिहा कर दिए गए.
श्री द्वारिका प्रसाद मौर्य जी ने देशसेवा में उम्र गुजर कर सन २००३ में अपना शरीर त्याग दिया.
. लखीमपुर में आज भी उनकी स्म्रतिया शेष है
जय हिंद --------------------जय भारत ----------