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Sunday, August 21, 2011

"कभी बन संवर के जो आ गए तो बहारे हुस्न दिखा गए,
 मेरे दिल को दाग लगा गए वो नया शगूफा खिला गए"
"कोई क्यूँ किसी का बिठाये दिल कोई क्यूँ किसी से लगाये दिल,
.    वो जो बेचते थे दवाएं दिल वो दुकान अपनी बढा गए"
 "यही शौक था हमें दम ब दम की बहार देखेंगे अबकी हम 
.     जु ही छूटे कैदे कफस से हम तो सुना खिजा के दिन आ गए"
                               "Bhadur Shah Jafar"

1 comment:

  1. कभी बन संवर के जो आ गए तो बहारे-हुस्न दिखा गए,
    मेरे दिल को दाग लगा गए, वो नया शगूफा खिला गए

    कोई क्यों किसी का लुभाए दिल, कोई क्यों किसी से लगाये दिल,
    वो जो बेचते थे दवा-ए-दिल, वो दुकान अपनी बढा गए

    मेरे पास आते थे दम-ब-दम ,वो जुदा न होते थे एकदम
    ये दिखाया चर्ख ने क्या सितम की मुझी से आँख चुरा गए

    बँधे क्यों न आसुओंकी झड़ी, ये हसरते उनके गले पड़ी
    वे जो काकुले थी बड़ी-बड़ी, वो उन्ही के पेंच में आ गए

    यही शौक था हमें दम-ब- दम की बहार देखेंगे अब के हम
    ज्यूं ही छूटे कैदे-कफस से हम तो सुना खिजाँ के दिन आ गए
    ~बहादुर शाह जफ़र

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