तुम्हारी यादों के पन्ने,
पलट जाते है क्यूँ बार बार,
वही नकाब , वही ऑंखें ,
वही गलियां , बुलाती है ,
क्यूँ मुझे बार बार ,
आज भी गूँज जाती है
तुम्हारी आवाज़ मेरी कानो में,
और मैं बंद हो जाता हूँ,
तुम्हारे यादों के खोल में,
रेशम के कीड़े की तरह,
इंतज़ार करता हुआ अपनी,
मौत का ,
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