मेरी भटकती निगाहों को मंजिल मिल गयी होती,
काश! तुमने एक बार देखा तो होता,
मेरे पाँव की भटकन थम गयी होती ,
काश! तुमने पुकारा तो होता ,
न जाने कब पिघलेगी अजनबी पन की बर्फ ,
एक बार अपनी मौजूदगी का एहसास तो दिया होता,
यह सोच कर बैठा हूँ साहिल की किनारे,
काश तूफानों ने ही सहारा दिया होता,
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