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Sunday, May 8, 2011

वो खूबसूरत ऑंखें,
सारे प्यार को समेटे हुए, 
अथाह गहराई है जिनकी,
पता नहीं क्यूँ मुझे,
एक नई दुनिया दिखाती है ,
गहरी झील सी ऑंखें,
तैरना जनता हु फिर भी, 
डूब जाना चाहता हूँ ,
बह जाना चाहता हूँ ,
हवा में उड़ते पत्ते के ,
मानिंद
काजल की रेखा लगती है,
एक खूबसूरत किनारा, 
जिस पर खड़े होकर,
अक्सर मैं सोचता हु,
काश! यह जन्नत मेरी होती,
सायद येही है,
दिवा स्वप्न मेरा.............................. 









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