क्यूँ भटकता हूँ मैं,
इस दर्द के रेगिस्तान में ,
प्यार की एक बूँद के लिए,
शायद किश्मत को मेरा ,
भटकना ही मंजूर है,
ए मेरी कल्पना,
एक बार आगोश में लेकर देख,
मैं भी बिखरना चाहता हूँ,
कही ऐसा न हो कि,
समय के झंझावत ,
मुझे तुम्हारे आने से पहले ही,
बिखेर दे,
कागज़ के टुकडो कि तरह,
और रह जाऊ मैं इक ,
इतिहास बनकर,
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