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Friday, May 13, 2011

एक मुद्दत हुई, 
तुमसे कहना है कुछ पर मैं कैसे कहू, 
आरज़ू है मुझे ऐसे अल्फाज़ की,
जो किसी से कहे न हो, 
लफ्ज़ कुछ ऐसे हो,
जो सुरमई शाम के गेसुओं में बंधी,
बरिशे खोल दे, 
फूल के सुर्ख होटों पे ओश रख दू
ख्वाब की मांग में सिन्दूर की लाइन खीच दू,
आरजू है ऐसे अल्फाज़ की,
ख्वाब को हकीकत किया जा साके
एक सच्ची कहानी किया जा सके,..............
 

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